Kannappa Movie Review – तेलुगु फिल्म ‘कन्नप्पा’ एक महान भक्ति कथा को नए जमाने के दर्शकों के सामने लाने की कोशिश करती है, लेकिन कहानी के भीतर भावनात्मक जुड़ाव की कमी और असंतुलित प्रस्तुति इसे कमज़ोर बना देती है।

‘कन्नप्पा’ फिल्म रिव्यू: भक्ति की भव्य कहानी लेकिन आत्मा की कमी
फिल्म की शुरुआत दिलचस्प होती है, जहां एक नास्तिक शिकारी थिन्ना, जिसे अर्जुन का पुनर्जन्म माना जाता है, भगवान शिव का अनन्य भक्त बनता है। अंत में वह अपनी दोनों आँखें शिवलिंग को समर्पित कर देता है और इसी त्याग के चलते उसे ‘कन्नप्पा’ नाम मिलता है।
Kannappa Movie Review कास्टिंग में सितारों की भरमार
फिल्म में विशाल स्टारकास्ट है – विष्णु मांचू मुख्य भूमिका में हैं और साथ में हैं अक्षय कुमार, काजल अग्रवाल, मोहनलाल और प्रभास जैसे नाम। प्रभास का रुद्र के रूप में कैमियो दर्शकों को रोमांचित करता है, खासकर जब वो अपने कुंवारेपन पर खुद ही चुटकी लेते हैं। लेकिन इन बड़े नामों के बावजूद फिल्म की कहानी भावनात्मक स्तर पर जुड़ नहीं पाती।
कहानी का भटकाव और भव्यता का बोझ
Kannappa Movie Review- फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसकी पटकथा है। कभी-कभी थिन्ना की नास्तिकता और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज़ उठाना गंभीर सोच को जन्म देता है, लेकिन कहानी जल्द ही फिर से भक्तिमार्ग पर लौट जाती है, बिना किसी गहराई के।
फिल्म का बड़ा हिस्सा न्यूजीलैंड में शूट किया गया है, जिससे दृश्य तो भव्य लगते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति की आत्मा से कटा हुआ महसूस होता है। विशेष रूप से कालमुखा जाति से लड़ाई का दृश्य ‘बाहुबली’ के कालकेय योद्धाओं की याद दिलाता है, लेकिन उतनी प्रभावशाली नहीं बन पाता।
भावनाओं की संभावनाएं अधूरी रह गईं
Kannappa Movie Review – फिल्म में कुछ भावनात्मक क्षण ज़रूर हैं – जैसे थिन्ना और उसके पिता (शरत कुमार) के बीच का रिश्ता, या उसकी दिवंगत मां की यादें। वहीं नेमाली (प्रीति मुखुंदन), जो एक योद्धा राजकुमारी और शिवभक्त है, में संभावनाएं थीं लेकिन उसे सिर्फ सुंदरता और गानों तक सीमित कर दिया गया।
भक्ति की विविधता को छूने की कोशिश अधूरी
मोहन बाबू द्वारा निभाया गया महादेव शास्त्री का पारंपरिक पूजा-पद्धति वाला चरित्र और थिन्ना का मांस-भेंट वाली पूजा शैली का टकराव एक दिलचस्प विमर्श को जन्म देता है, लेकिन यह मोड़ बहुत देर से आता है और जल्दबाज़ी में खत्म कर दिया जाता है।
भीड़ में खो गए किरदार
फिल्म में ब्रह्मानंदम, सप्तगिरी, मधु, ब्रह्माजी, अईश्वर्या भास्करन जैसे कई कलाकार हैं, लेकिन कहानी में उनके लिए कोई खास स्थान नहीं है। इन सबके बीच केवल शरत कुमार और मोहन बाबू ही अपने अभिनय की छाप छोड़ते हैं। विष्णु मांचू अंत तक आते-आते अपने किरदार में थोड़ी पकड़ बनाते हैं, लेकिन तब तक फिल्म का प्रवाह धीमा हो चुका होता है।
निष्कर्ष: आस्था का भाव, लेकिन आत्मा की कमी
कन्नप्पा एक शक्तिशाली पौराणिक कथा पर आधारित है, जिसमें बलिदान और भक्ति की भावना है। लेकिन फिल्म सिर्फ नामी सितारों और विदेशी लोकेशन पर भरोसा करके अपने मकसद से भटक जाती है। इसकी असली ताकत कहानी में थी, जिसे अगर सही दिशा दी जाती, तो यह एक यादगार भक्ति फिल्म बन सकती थी।
फिल्म वर्तमान में सिनेमाघरों में चल रही है।