Panchayat Season 4 Review- अमेज़न प्राइम वीडियो की लोकप्रिय वेब सीरीज़ ‘पंचायत’ अपने चौथे सीज़न में एक नई दिशा में कदम रखती है — गाँव की सादगी से राजनीति की पेचीदगियों तक। लेकिन यह बदलाव दर्शकों को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाता।

‘पंचायत’ सीज़न 4 रिव्यू: चुनावी माहौल में गुम हुआ फुलेरा का जादू
Panchayat Season 4 Review – कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ तीसरा सीज़न खत्म हुआ था — ब्रिज भूषण (रघुबीर यादव) पर हमले के बाद उनकी रिकवरी और अभिषेक (जीतेन्द्र कुमार) की कानूनी मुश्किलें। साथ ही उसका CAT परीक्षा का इंतज़ार पृष्ठभूमि में चलता रहता है। लेकिन अब फोकस है पंचायत चुनाव पर, जहाँ मंजू देवी (नीना गुप्ता) और क्रांति देवी (सुनीता राजवार) आमने-सामने हैं।
राजनीति की उठापटक और गाँव की हल्की-फुल्की कॉमेडी के मेल का प्रयास किया गया है, लेकिन दोनों के बीच तालमेल बिठाने में कहानी कमजोर नज़र आती है। कई बार गंभीर दृश्य को अचानक हल्के मजाक में बदल दिया जाता है, जिससे उस भावनात्मक प्रभाव की गहराई खो जाती है।
राजनीति, रहस्य और आलू की राजनीति
Panchayat Season 4 Review – पूरे सीज़न में चुनावी रणनीतियाँ, जैसे मुफ्त आलू बाँटना या पूर्व विधायक को पार्टी से दरकिनार करना, दर्शकों को मनोरंजन तो देती हैं लेकिन ये घटनाएं अनुमानित लगती हैं। आठ एपिसोडों में एक रहस्य की भी परत है — ब्रिज भूषण पर गोली चलाने वाले का पता लगाना। पर इस ‘हू-डन-इट’ शैली को भी पूरी तरह से निखारा नहीं गया।
महिलाओं की भागीदारी पर सवाल
सीरीज़ में एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या ‘पंचायत’ अब भी ‘बॉयज़ क्लब’ बनी हुई है? मंजू देवी चुनाव की मुखिया होते हुए भी अपने पति की छाया बनी रहती हैं। नीना गुप्ता को सीमित स्क्रीन टाइम मिला है, लेकिन उन्होंने अपनी भूमिका में प्रभाव जरूर छोड़ा है।
पुराना फॉर्मूला, नई दिशा से मेल नहीं
‘पंचायत’ की खासियत इसकी धीमी गति वाली, गहराई भरी कहानी रही है। लंबे दृश्य, संवादों में ठहराव, और सामान्य बातों में छुपी विशेषता — यही इसकी पहचान थी। लेकिन चौथे सीज़न में नई राजनीतिक दिशा के साथ यह संतुलन बिगड़ता हुआ दिखता है।
ब्रिज भूषण एक संवाद में राजनीति को ‘झूठ, धोखा और चालाकियों’ का खेल बताते हैं, लेकिन अगले ही पल कोई हल्का-फुल्का दृश्य उस गंभीर बात को हंसी में उड़ा देता है। यही उतार-चढ़ाव दर्शकों को जुड़ने नहीं देता।
भविष्य के लिए तैयारी, वर्तमान में सवाल
यह सीज़न एक प्रकार से ‘फिलर सीज़न’ लगता है — मतलब, पाँचवें सीज़न की जमीन तैयार करने वाला। इसमें कई सवाल अधूरे रहते हैं, जैसे अभिषेक का भविष्य, चुनाव के नतीजे और फुलेरा की राजनीति का अगला कदम। अगर इसे एक ब्रिज के रूप में देखा जाए, तो यह आगे की कहानी के लिए उत्सुकता जरूर जगाता है, लेकिन अपने आप में यह संतोषजनक नहीं बन पाता।
निष्कर्ष
‘पंचायत’ सीज़न 4 अपने पुराने रंग में कुछ पल के लिए लौटता है, लेकिन अधिकतर समय राजनीति के रंग में खोया रहता है। संवाद, अभिनय और लोकेल अब भी मजबूत हैं, लेकिन कहानी की दिशा और गहराई में वह बात नहीं जो पहले सीज़नों में देखने को मिली थी।