शायरी जिन्होंने दौर बदल दिए 

शायरी जिन्होंने दौर बदल दिए 

अज़ल तो मुफ़्त में बदनाम है ज़माने में, कुछ उनसे पूछ, जिन्हें ज़िंदगी ने मारा है। फ़ैज़

अज़ल तो मुफ़्त में बदनाम है ज़माने में, कुछ उनसे पूछ, जिन्हें ज़िंदगी ने मारा है। फ़ैज़

उस शख़्स के ग़म का कोई अंदाज़ा लगाए, जिसको कभी रोते हुए देखा न किसी ने। वकील अख़्तर

मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।  मजरूह सुल्तानपुरी 

मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।  मजरूह सुल्तानपुरी