Andhra Tenali Police Dalit Conflict आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले के तेनाली शहर को ‘आंध्र का पेरिस’ कहा जाता है, पर 26 मई को एक वीडियो के वायरल होने के बाद यह शहर पुलिस की बर्बरता के लिए चर्चा में आ गया। वीडियो में देखा गया कि तीन युवकों को सार्वजनिक स्थान पर पुलिसकर्मी बेरहमी से पीट रहे हैं। ये युवक – डोमा राकेश, चेब्रोलू जॉन विक्टर और शेख करीमुल्ला – को पुलिसकर्मी उनके पैरों पर डंडों से मारते हैं। राकेश के परिवार ने बताया कि उसके पैर में पहले से स्टील की रॉड लगी हुई थी।

आंध्र प्रदेश के तेनाली में पुलिस की बर्बरता का मामला: न्याय प्रणाली पर बड़ा सवाल
Andhra Tenali Police Dalit Conflict इन तीनों युवकों को 24 अप्रैल को एक पुलिस कांस्टेबल कन्ना चिरंजीवी पर कथित हमले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। लेकिन पुलिस द्वारा कानून के दायरे से बाहर जाकर उन्हें सार्वजनिक रूप से पीटना, पूरे राज्य में आक्रोश का कारण बन गया।
कानून का राज या जंगलराज? मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उठाई आवाज़
Andhra Tenali Police Dalit Conflict घटना की निंदा करते हुए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज बी. चंद्रकुमार ने कहा कि “पुलिस को कानून के मुताबिक ही कार्य करना चाहिए, कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पुलिस को खुले हाथ मिल गए तो अराजकता फैल जाएगी।
मानवाधिकार संगठनों, बार एसोसिएशनों और विपक्षी दलों ने इसे “जंगलराज” की संज्ञा दी है। खासतौर पर दलित और पिछड़े समुदाय के नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पुलिस ने अपनी सफाई में पोस्टर जारी कर कहा कि यह हमला दलितों पर नहीं था और संबंधित पुलिसकर्मियों पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
हालांकि मानवाधिकार संगठन इस सफाई को अस्वीकार करते हैं। आंध्र प्रदेश ह्यूमन राइट्स फोरम के सचिव जी. रोहित का कहना है कि “कोई भी अपराध हो, कानून का पालन होना चाहिए, ना कि सार्वजनिक उत्पीड़न।”
पीड़ित परिवारों का बयान: “हमें तब पता चला जब वीडियो लीक हुआ”
Andhra Tenali Police Dalit Conflict पीड़ितों के परिवारों ने बताया कि 24 अप्रैल की रात चार युवक एक जन्मदिन पार्टी के बाद बातचीत कर रहे थे, तभी कांस्टेबल चिरंजीवी वहां पहुंचे और कथित रूप से “मामूल” (घूस) मांगने लगे। जॉन विक्टर, जो कि वकील हैं, ने इसका विरोध किया, जिससे बहस हुई। पुलिस ने आरोप लगाया कि युवकों ने चाकू से हमला किया, लेकिन परिवारों का दावा है कि कोई चोट नहीं थी।
परिवारों के अनुसार, अगले दिन पुलिस ने युवकों को बिना वारंट घर से उठाया और बेरहमी से पीटा। 26 अप्रैल को उन्हें पुलिस स्टेशन के पीछे स्थित एक पुराने क्वार्टर में ले जाकर फिर पीटा गया। एक दिन बाद फिर एक सार्वजनिक स्थान पर पीटा गया और वीडियो बनाया गया।
राकेश की मां ने चिंता जताई कि उसके बेटे के पैर की हालत खराब हो गई है। “अगर उसका पैर हमेशा के लिए खराब हो गया होता तो जिम्मेदार कौन होता?” उन्होंने पूछा।
- Also Read – Epstein Files जेफरी एपस्टीन केस: 200 गुप्त दस्तावेज़ सार्वजनिक, पर क्या सच में कोई बड़ा नाम फंसा?
क्या पुलिस खुद जज, ज्यूरी और जल्लाद बन गई है?
इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पुलिस को यह अधिकार है कि वह खुद ही न्याय करने लगे? एक एनजीओ ‘वसव्या महिला मंडली’ की अध्यक्ष बी. कीर्ति ने कहा कि “समाज से विमुख लोगों के पुनर्वास के लिए सामुदायिक भागीदारी जरूरी है, पुलिस के पास काउंसलिंग जैसी क्षमताएं नहीं होतीं।”
इस घटना का राजनीतिक रंग भी पकड़ लिया है। वाईएसआरसीपी अध्यक्ष वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने पीड़ितों के घर जाकर सरकार की आलोचना की। गृह मंत्री वी. अनिता ने जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि दोषियों पर उचित कार्रवाई होगी।
इसके अलावा पहले भी इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं। फरवरी में गुंटूर ज़िले के मायलावरम मंडल में दलित मजदूर चाला सुब्बा राव और वड्लापुडी सैमसन को पुलिस ने बिना एफआईआर गिरफ्तार कर गैरकानूनी हिरासत में लिया और बुरी तरह पीटा। बाद में पता चला कि असली आरोपी मृतक के बेटा था। लेकिन पुलिस ने पीड़ितों को चुपचाप छोड़ दिया।
निष्कर्ष:
तेनाली की यह घटना हमारे पुलिस तंत्र की उस प्रणालीगत कमजोरी की ओर इशारा करती है, जहां कानून को ताक पर रखकर तुरंत सज़ा देने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह न सिर्फ मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी सीधा हमला है। जब तक पुलिस तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की व्यवस्था नहीं होगी, ऐसे मामले बार-बार सामने आते रहेंगे।
Source: The Hindu