Chagos Islands Dispute: 22 मई 2025 को, ब्रिटेन ने चागोस द्वीप समूह की सम्प्रभुता आधिकारिक रूप से मॉरिशस को सौंप दी। यह फैसला अक्टूबर 2024 में हुए एक राजनीतिक समझौते के तहत लिया गया था। इसके अंतर्गत डिएगो गार्सिया—जो कि एक प्रमुख नौसैनिक और बमबारी अड्डा है—को ब्रिटेन मॉरिशस से लीज पर लेकर अमेरिका द्वारा चलाया जाएगा।

चागोस द्वीप समूह सौंपे जाने का ऐतिहासिक फैसला
Chagos Islands Dispute: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कियर स्टारमर ने इस सौदे को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि यदि ब्रिटेन यह समझौता नहीं करता, तो मॉरिशस द्वारा कानूनी चुनौती से चीन या अन्य देश द्वीपों के पास सैन्य अभ्यास या अड्डा स्थापित कर सकते थे।
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चागोस द्वीपों का इतिहास
वर्ष | घटना |
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1793 | फ्रांसीसी ने नारियल के बागानों की स्थापना की |
1814 | द्वीप ब्रिटिश साम्राज्य को सौंपे गए |
1965 | ब्रिटेन ने चागोस को British Indian Ocean Territory घोषित किया |
1968 | मॉरिशस को स्वतंत्रता मिली, लेकिन चागोस को अलग रखा गया |
1971 | डिएगो गार्सिया में अमेरिकी सैन्य अड्डा स्थापित |
2019 | ICJ ने चागोस को मॉरिशस का हिस्सा माना |
2025 | ब्रिटेन ने सम्प्रभुता मॉरिशस को सौंप दी |
चागोस विवाद की जड़ें
Chagos Islands Dispute: चागोस द्वीप, जिसमें 60 छोटे द्वीप शामिल हैं, पहले फ्रांसीसी उपनिवेश थे। ब्रिटेन ने 1814 में इन्हें फ्रांस से प्राप्त किया और फिर 1965 में इन्हें British Indian Ocean Territory (BIOT) बना दिया। 1967 में, अमेरिका और ब्रिटेन ने डिएगो गार्सिया में सैन्य अड्डा स्थापित करने का समझौता किया।
मॉरिशस ने हमेशा इस पृथक्करण को अवैध माना है। 1968 में स्वतंत्रता के समय ब्रिटेन ने £3 मिलियन की सहायता देकर चागोस को मॉरिशस से अलग किया। इसके बाद 1968 से 1973 के बीच, चागोस के लगभग 10,000 मूल निवासियों को जबरन हटा दिया गया।
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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप
Chagos Islands Dispute: 2010 में, ब्रिटेन ने चागोस को ‘Marine Protected Area’ घोषित किया, जिससे वहां मछली पकड़ना और तेल-खनन जैसे कार्यों पर रोक लग गई। मॉरिशस ने इस फैसले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में चुनौती दी और 2015 में अदालत ने कहा कि यह निर्णय संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानूनों के विरुद्ध है।
2019 में, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि मॉरिशस का उपनिवेशीकरण अधूरा रहा था और ब्रिटेन को जल्द से जल्द चागोस छोड़ देना चाहिए। इसके बाद UN महासभा ने भी इसपर ब्रिटेन से कार्रवाई करने को कहा।
यू.के.-मॉरिशस सौदा: क्या मिला किसे?
2024 में ग्यारह दौर की बातचीत के बाद ब्रिटेन और मॉरिशस ने चागोस के सम्प्रभुता सौंपने पर सहमति बनाई। इसके अंतर्गत:
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डिएगो गार्सिया को 99 साल की लीज़ पर ब्रिटेन और अमेरिका को दिया गया
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£101 मिलियन सालाना की दर से मॉरिशस को भुगतान
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पहले 3 वर्षों तक £165 मिलियन, फिर 10 साल तक £120 मिलियन, और बाद में मुद्रास्फीति के अनुसार बढ़ोतरी
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मॉरिशस को सम्प्रभुता तो मिली, लेकिन डिएगो गार्सिया पर पुनर्वास की अनुमति नहीं
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£40 मिलियन का ट्रस्ट फंड चागोस वासियों के लिए स्थापित किया जाएगा
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24 मील के दायरे में किसी भी निर्माण पर ब्रिटेन का वीटो अधिकार
विरोध और विवाद
Chagos Islands Dispute: ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी ने इस सौदे की आलोचना की, इसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा और चीन के प्रभाव को बढ़ाने वाला बताया। उनका तर्क है कि इससे ब्रिटेन पर £3.4 बिलियन का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। दूसरी ओर, कुछ चागोस वासी भी इस समझौते से संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि उन्हें उनके मूल घर लौटने की अनुमति नहीं दी गई।
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भारत की भूमिका
भारत ने इस पूरे मुद्दे पर शांत और निर्णायक भूमिका निभाई। भारत ने “विकेन्द्रिकरण और सम्प्रभुता” के सिद्धांतों के तहत मॉरिशस के दावे का समर्थन किया। भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान दिया कि यह समझौता हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा, शांति और स्थायित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारत और अमेरिका दोनों ने ही मॉरिशस और ब्रिटेन को इस समझौते तक पहुँचने में सहायता प्रदान की। इससे भारत की विदेश नीति की परिपक्वता और हिन्द महासागर में उसकी रणनीतिक सोच का प्रमाण मिलता है।
निष्कर्ष
चागोस द्वीप समूह की वापसी केवल एक राजनीतिक घटना नहीं है, यह उपनिवेशवाद के अंतिम अवशेष को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मॉरिशस को अपनी सम्प्रभुता वापस मिलना केवल न्याय का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एक भू-राजनीतिक संतुलन का प्रतीक भी है जिसमें भारत और अमेरिका जैसे देशों की कूटनीति की गूंज भी सुनाई देती है।