भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है। चीन ने अरुणाचल के कई स्थानों के नाम बदलकर उसे ज़ंगनान कहने का दावा किया है। यह कोई पहली बार नहीं है, बल्कि पांचवीं बार है जब चीन इस तरह की हरकत कर चुका है। भारत सरकार ने इस कदम को बेबुनियाद और निरर्थक बताते हुए सख्त आपत्ति जताई है।

चीन की नई साजिश: अरुणाचल के नाम बदल भारत को घेरने की कोशिश
चीन का यह दावा ऐसे समय में आया है जब भारत-पाकिस्तान के बीच हालात तनावपूर्ण हैं। जानकारों का मानना है कि चीन जानबूझकर इस समय पर ऐसा कर रहा है ताकि वह क्षेत्रीय विवादों में खुद को सक्रिय बनाए रखे और पाकिस्तान के साथ खड़ा हो सके। दरअसल, चीन भारत के खिलाफ एक नया मोर्चा खोलने की कोशिश कर रहा है।
चीनी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि अरुणाचल प्रदेश, जिसे वह ‘ज़ंगनान’ कहता है, चीन का हिस्सा है और वहां के स्थानों के नाम बदलना उनका ‘संप्रभु अधिकार’ है। इस बयान पर भारत के विदेश मंत्रालय ने सख्त प्रतिक्रिया दी है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा है कि “अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। चीन के इस प्रकार के बेतुके प्रयास कभी सफल नहीं होंगे।”
भारत-पाक तनाव के बीच चीन की घुसपैठ की चाल बेनकाब
भारत ने साफ कर दिया है कि नाम बदलने से हकीकत नहीं बदलती। भारत पहले भी चीन की ऐसी हरकतों का विरोध करता रहा है और अब भी मजबूती से इसका खंडन कर रहा है। विदेश मंत्रालय ने चीन के इस कदम को “निर्थक और रचनात्मक नामकरण का प्रयास” बताया है जो भारत की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकता।
चीन ने इससे पहले भी 2017, 2021, 2023 और 2024 में अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की थी। 2017 में जब दलाई लामा ने अरुणाचल यात्रा की थी, तभी पहली बार चीन ने इस तरह का कदम उठाया था। इसके बाद जब भारत ने G-20 सम्मेलन की सफल मेज़बानी की, उस वक्त भी चीन ने ऐसा ही प्रयास किया था।
इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। भारत-पाक के बीच तनाव की स्थिति है और चीन इस मौके का लाभ उठाकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है। लेकिन भारत सरकार पहले से कहीं ज़्यादा स्पष्ट और सशक्त रुख अपना रही है। उसका कहना है कि चाहे चीन कितनी भी बार नाम बदल ले, अरुणाचल भारत का ही हिस्सा रहेगा।
भारत ने इस बात को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बार-बार स्पष्ट किया है कि वह अपनी सीमाओं और अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा। यह विवाद केवल दो देशों के बीच की सीमा रेखा का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता से जुड़ा विषय है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन बार-बार इस मुद्दे को उठाकर क्या हासिल करना चाहता है, लेकिन फिलहाल भारत का रुख पूरी तरह स्पष्ट है – कोई भी बाहरी दबाव या दावा भारत की संप्रभुता को बदल नहीं सकता।