भारत-पाकिस्तान के बीच हाल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद तनाव बढ़ा है, जिस पर चीन ने अपनी चिंताएं जाहिर की हैं। चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि चीन कभी नहीं चाहेगा कि यह स्थिति पूर्ण युद्ध में बदल जाए। बीजिंग के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने कहा कि 1999 के कारगिल युद्ध के बाद से चीन का रुख हमेशा यही रहा है कि सैन्य टकराव से समस्या का समाधान नहीं होगा। चाहे 2001 का संसद हमला हो या 2008 का मुंबई हमला, चीन ने हमेशा कूटनीतिक समाधान का समर्थन किया है।

बीजिंग का संदेश: भारत-पाक संघर्ष से पूरे क्षेत्र को खतरा
चीनी विशेषज्ञों के मुताबिक, चीन की प्राथमिकता क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखना है। चीन नहीं चाहता कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव नियंत्रण से बाहर जाए, क्योंकि इससे पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिरता को खतरा हो सकता है। भले ही भारत और चीन के बीच कुछ मुद्दों पर असहमति हो, लेकिन बीजिंग का रुख यही रहेगा कि पड़ोसी देशों में बड़ा सैन्य संघर्ष रोका जाए।
एक अन्य वरिष्ठ चीनी विद्वान हू शीशेंग का कहना है कि चीन भारत और पाकिस्तान के बीच किसी बड़े युद्ध को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएगा। उनका कहना है कि युद्ध के नतीजे केवल भारत और पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि पूरे क्षेत्र और यहां तक कि वैश्विक स्तर पर असर डालेंगे। इसीलिए चीन कूटनीतिक माध्यमों जैसे संयुक्त राष्ट्र, एससीओ और ब्रिक्स के जरिए समाधान की कोशिश करेगा।
हू शीशेंग का यह भी कहना है कि भारत फिलहाल बड़े सैन्य संघर्ष में नहीं उलझना चाहेगा, क्योंकि अमेरिका के साथ उसकी व्यापार वार्ताएं अहम दौर में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम इस समय अमेरिका-चीन व्यापार तनाव का फायदा उठाकर विदेशी निवेश आकर्षित करने की रणनीति अपना रही है।
चीन के लिए पाकिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन बीजिंग यह स्पष्ट करता है कि उसकी प्राथमिकता अपने निवेशों की रक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना है। खासतौर पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की सुरक्षा उसके लिए अहम है। अगर हालात बिगड़ते हैं, तो चीन न केवल कूटनीतिक कोशिशें बढ़ाएगा, बल्कि भारत के साथ अपनी सीमाओं पर सतर्कता भी बरतेगा।