India Compete with China for Rare Earth magnet: आज की दुनिया में चाहे बात इलेक्ट्रिक गाड़ियों की हो या फिर पवन और सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों की, रेयर अर्थ मैग्नेट्स (Rare Earth Magnets) की अहमियत तेजी से बढ़ती जा रही है। ये छोटे-से दिखने वाले मैग्नेट दरअसल तकनीकी और औद्योगिक दुनिया की रीढ़ बन चुके हैं।

अब भारत में बनेगा ‘रेयर अर्थ मैग्नेट’, चीन पर खत्म होगी निर्भरता
अब तक इस क्षेत्र में चीन का वर्चस्व था, लेकिन अब भारत सरकार ने 1000 करोड़ रुपये खर्च कर इस उद्योग को देश में खड़ा करने का फैसला लिया है। इससे न सिर्फ भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि चीन की एकाधिकारवादी नीति को करारा जवाब भी मिलेगा।
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India Compete with China for Rare Earth magnet सरकार की योजना क्या है?
CNBC-TV18 की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार रेयर अर्थ मैग्नेट्स के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना पर काम कर रही है, जिसमें:
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1000 करोड़ रुपये की लागत से एक नया प्रोत्साहन कार्यक्रम तैयार किया गया है।
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इसका संचालन भारी उद्योग मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा विभाग मिलकर करेंगे।
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योजना के तहत हर साल 1500 टन रेयर अर्थ मैग्नेट भारत में बनाए जाएंगे।
यह स्कीम अभी अंतिम चरण में है और अगले 10-15 दिनों में इसे लॉन्च किया जा सकता है। देश की कई प्रमुख कंपनियों ने इसमें रुचि दिखाई है, और 5-6 कंपनियां शुरुआती दौर में भाग ले सकती हैं।
क्यों जरूरी है यह स्कीम? (India Compete with China for Rare Earth magnet)
1. चीन की निर्भरता से मुक्ति:
अब तक भारत रेयर अर्थ मैग्नेट्स के लिए चीन पर निर्भर था। लेकिन हाल के वर्षों में चीन ने अपने रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर पाबंदियां लगाई हैं, जिससे भारत सहित पूरी दुनिया की इंडस्ट्रीज पर असर पड़ा है।
2. स्वदेशी उत्पादन से सुरक्षा सुनिश्चित:
अगर भारत खुद रेयर अर्थ मैग्नेट बनाएगा तो वह न सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी कर सकेगा, बल्कि आपातकालीन स्थितियों में विदेशी दबाव से बचाव भी होगा।
3. आत्मनिर्भर भारत मिशन को मजबूती:
यह कदम सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के अनुरूप है। उच्च तकनीक क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाना अब प्राथमिकता बन चुकी है।
किन क्षेत्रों में होते हैं रेयर अर्थ मैग्नेट्स का इस्तेमाल?
सेक्टर | उपयोग |
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ऑटोमोबाइल | इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मोटर्स में |
रिन्युएबल एनर्जी | विंड टर्बाइन और सोलर ट्रैकिंग सिस्टम में |
डिफेंस | मिसाइल गाइडेंस, रडार सिस्टम |
एयरोस्पेस | एयरक्राफ्ट कंट्रोल सिस्टम |
इलेक्ट्रॉनिक्स | मोबाइल, लैपटॉप, मेडिकल डिवाइसेस में |
इससे स्पष्ट है कि रेयर अर्थ मैग्नेट्स केवल उद्योग नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का भी अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।
India Rare Earth Limited को अहम जिम्मेदारी
इस मिशन में India Rare Earth Limited (IREL) की बड़ी भूमिका तय की गई है। यह कंपनी:
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हर साल 500 टन कच्चा माल सीधे मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को देगी।
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इससे कंपनियों को निर्बाध रूप से उत्पादन जारी रखने में मदद मिलेगी।
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घरेलू उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति स्थिर बनेगी।
इसका मतलब यह है कि भारत अब पूरी तरह से इस उत्पादन शृंखला (supply chain) को देश के भीतर ही विकसित करने की दिशा में बढ़ रहा है।
रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए भी अलग योजना
रेयर अर्थ मैग्नेट्स के साथ-साथ भारत सरकार रेयर अर्थ मिनरल्स की भी खुद की मैन्युफैक्चरिंग की योजना बना रही है।
Times of India की रिपोर्ट के अनुसार:
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इसके लिए सरकार 3500 से 5000 करोड़ रुपये तक निवेश कर सकती है।
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योजना का इंटर्नल असेसमेंट चल रहा है और जल्द ही इसका कार्यान्वयन शुरू होगा।
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यह योजना भारत को मिनरल संसाधनों के वैश्विक मानचित्र पर मजबूत जगह दिलाएगी।
निष्कर्ष: तकनीक में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम
चीन द्वारा बनाए जा रहे तकनीकी दबाव को देखते हुए भारत का यह फैसला बेहद रणनीतिक और दूरदर्शी है। इससे भारत केवल अपनी जरूरतें ही नहीं पूरी करेगा, बल्कि वैश्विक उद्योगों के लिए एक वैकल्पिक आपूर्ति केंद्र के रूप में भी उभर सकता है।
यह कदम भारत की तकनीकी संप्रभुता (Technological Sovereignty) की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
अंतिम पंक्ति:
अब लड़ाई सिर्फ सीमाओं पर नहीं, उद्योग, तकनीक और संसाधनों के स्तर पर भी है। भारत ने यह कदम उठाकर दिखा दिया है कि वह अब केवल उपभोक्ता नहीं, निर्माता भी बनना चाहता है। आने वाले वर्षों में चीन की इस एकाधिकारवादी शक्ति को भारत से कड़ी टक्कर मिलने वाली है।