Khemchand Prakash : बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में कुछ ऐसे नाम भी होते हैं जो खुद पीछे रहकर दूसरों को चमकाने का काम करते हैं। इन्हीं में से एक थे खेमचंद प्रकाश, एक प्रतिभाशाली संगीतकार जिन्होंने भारतीय सिनेमा को लता मंगेशकर और किशोर कुमार जैसे अनमोल रत्न दिए। लेकिन विडंबना देखिए कि जिन कलाकारों को उन्होंने ऊंचाइयों तक पहुंचाया, उनके जीवन के अंतिम साल कंगाली और गुमनामी में बीते।

शोहरत से गुमनामी तक: खेमचंद प्रकाश की दर्दनाक कहानी
Khemchand Prakash 1940 और 50 के दशक में हिंदी सिनेमा के सबसे चर्चित संगीतकारों में गिने जाते थे। उन्होंने उस दौर में कई सुपरहिट फिल्मों में संगीत दिया और ऐसे-ऐसे गीत गढ़े जो आज भी अमर हैं। कहा जाता है कि लता मंगेशकर को खेमचंद प्रकाश ने पहली बड़ी फिल्म ‘महल’ (1949) में मौका दिया था, जिसमें उनका गाया गीत “आएगा आने वाला” सुपरहिट हुआ। यही गाना लता की पहचान बन गया।
इसी तरह किशोर कुमार को भी उन्होंने फिल्म ‘जिद्दी’ में ब्रेक दिया। किशोर उस वक्त एक संघर्षरत युवा थे, लेकिन खेमचंद प्रकाश की संगीत निर्देशना में उनका गाया गाना “मरने की दुआएं क्यों मांगू” लोगों की जुबान पर चढ़ गया।
पर दुख की बात यह रही कि खेमचंद प्रकाश को उनकी मेहनत और योगदान के बावजूद न तो आर्थिक सुरक्षा मिली, न ही इंडस्ट्री से कोई स्थायी सम्मान। जब वह बीमार पड़े और करियर ढलने लगा, तो इंडस्ट्री ने मुंह मोड़ लिया। उनकी मृत्यु बेहद गरीबी में हुई। यही नहीं, वर्षों बाद उनकी पत्नी को मुंबई के एक रेलवे स्टेशन पर भीख मांगते हुए पाया गया, जिससे यह साफ जाहिर हुआ कि उनके परिवार की हालत कितनी बदतर हो गई थी।
गीतकार जावेद अख्तर ने इस त्रासदी का जिक्र कॉपीराइट संशोधन बिल 2010 के समर्थन में किया था। वे लंबे समय से इस बात की वकालत करते रहे हैं कि संगीतकारों, गीतकारों और अन्य रचनात्मक लोगों को उनके काम की रॉयल्टी मिलनी चाहिए ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रह सके। उन्होंने कहा कि खेमचंद प्रकाश जैसे महान संगीतकारों को न तो उनके जीते जी उचित मान-सम्मान मिला, न ही मरने के बाद उनके परिवार को कोई सहायता मिली।
यह कहानी सिर्फ Khemchand Prakash की नहीं है, बल्कि उन तमाम कलाकारों की भी है जो एक समय पर फिल्मी दुनिया के स्तंभ माने जाते थे, लेकिन करियर खत्म होने के बाद उन्हें किसी ने याद तक नहीं किया। कई तो भूखे-मरने की कगार तक पहुंच गए।
आज की नई पीढ़ी शायद Khemchand Prakash के नाम से अनजान हो, लेकिन जिन लता और किशोर की आवाज़ों पर वह थिरकती है, उनकी नींव रखने वाला यही संगीतकार था। उनके योगदान को याद रखना और ऐसे कलाकारों के लिए एक स्थायी सामाजिक-सांस्कृतिक सुरक्षा तंत्र बनाना ज़रूरी है।
निष्कर्ष:
Khemchand Prakash की जिंदगी एक ऐसी दास्तां है जो हमें बताती है कि शोहरत हमेशा स्थायी नहीं होती। ज़रूरी है कि हम उन कलाकारों को भी याद रखें जो पर्दे के पीछे से दूसरों की ज़िंदगी रोशन करते हैं। आज जब म्यूजिक इंडस्ट्री अरबों का व्यापार बन चुकी है, तो ये उसका नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह अपने बुनियादी स्तंभों का सम्मान करे।