14 मई, 2025 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक भावनात्मक और कूटनीतिक सफलता देखने को मिली जब पाकिस्तान ने बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को भारत को सौंप दिया। 40 वर्षीय पूर्णम शॉ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के निवासी हैं और पिछले 17 वर्षों से सीमा सुरक्षा बल (BSF) में सेवा दे रहे हैं। वह 23 अप्रैल, 2025 को पंजाब के फिरोजपुर जिले में गलती से अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर गए थे, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान रेंजर्स ने पकड़ लिया था।

BSF जवान पूर्णम शॉ की वापसी
कैसे पहुंचे पाकिस्तान की सीमा में?: यह घटना तब हुई जब बीएसएफ के जवान किसानों की निगरानी के लिए फेंसिंग पार कर खेतों की ओर गए थे। गर्मी से परेशान होकर कांस्टेबल पूर्णम शॉ एक पेड़ की छांव में बैठ गए, जो दुर्भाग्यवश पाकिस्तान की सीमा के भीतर था। वहां एक पाकिस्तानी किसान ने उन्हें देख लिया और पाकिस्तानी रेंजर्स को सूचना दी। रेंजर्स ने मौके पर पहुंचकर उन्हें हिरासत में ले लिया और उनकी राइफल भी जब्त कर ली।
पारिवारिक संकट और सरकार की पहल
जैसे ही यह खबर भारत पहुंची, जवान के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उनकी पत्नी रजनी, जो उस समय गर्भवती थीं, ने तुरंत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिलने की कोशिश की और अपने पति की सुरक्षित वापसी के लिए हर संभव प्रयास करने की अपील की। रजनी और परिवार के अन्य सदस्य उस जगह भी पहुंचे जहां शॉ तैनात थे और बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की।
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सरकार और सेना की संयुक्त कोशिशें
घटना के तुरंत बाद भारत ने पाकिस्तान से उच्च स्तरीय वार्ता शुरू की। बीएसएफ और पाकिस्तान रेंजर्स के बीच फ्लैग मीटिंग्स और नियमित संवाद होते रहे। दोनों देशों के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिटरी ऑपरेशंस) स्तर की बातचीत भी की गई। भारत की लगातार कोशिशों और मानवीय अपीलों के चलते आखिरकार पाकिस्तान ने 14 मई को पूर्णम शॉ को अटारी-वाघा बॉर्डर पर भारत को सौंप दिया।
बीएसएफ ने आधिकारिक बयान में कहा, “आज सुबह 10:30 बजे बीएसएफ कांस्टेबल पूर्णम कुमार शॉ को पाकिस्तान रेंजर्स से प्राप्त किया गया। यह बीएसएफ के निरंतर प्रयासों और आपसी संवाद का नतीजा है कि हमारी टीम के सदस्य की सुरक्षित वापसी संभव हो पाई है।”
पिता का भावुक संदेश
जवान के पिता भोला नाथ शॉ, जो कि एक सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी हैं, ने अपने बेटे की वापसी पर गहरी संतुष्टि जताई। उन्होंने कहा, “मैं केंद्र और राज्य सरकार का धन्यवाद करता हूं जिन्होंने मेरे बेटे को पाकिस्तान से सुरक्षित भारत वापस लाने में मदद की। अब जब मेरा बेटा लौट आया है, तो मैं चाहता हूं कि वह फिर से देश सेवा करे।”
न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष रूप से धन्यवाद किया और कहा कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे प्रयासों के चलते ही यह मुमकिन हो पाया।
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मेडिकल जांच और आगे की प्रक्रिया
पूर्णम शॉ को वाघा बॉर्डर से बीएसएफ अधिकारियों ने अपने साथ लिया और उन्हें तुरंत मेडिकल जांच के लिए भेजा गया। यह कदम सुरक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद जरूरी था। जांच के बाद उन्हें उनके परिजनों के पास भेजा जाएगा। BSF जवान पूर्णम शॉ की वापसी हो रही है।
संवेदनशीलता और रणनीति का संतुलन
यह घटना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। एक तरफ यह सीमा पर तैनात जवानों के लिए सतर्कता की आवश्यकता को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर यह दिखाती है कि कूटनीतिक संवाद और मानवीय मूल्यों के बल पर दो देशों के बीच तनातनी के बावजूद भी एक सकारात्मक नतीजा निकल सकता है।
पूर्णम शॉ की गिरफ्तारी उस वक्त हुई थी जब एक दिन पहले ही कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ था। उस हमले के बाद यह घटना भारत-पाक संबंधों में और तनाव पैदा कर सकती थी, लेकिन दोनों पक्षों की संयम और संवाद की नीति के चलते यह टल गया।
पत्नी का संघर्ष और नारी शक्ति का उदाहरण
जवान की पत्नी रजनी ने जिस साहस और धैर्य का परिचय दिया, वह प्रेरणादायक है। एक ओर वह गर्भवती थीं, दूसरी ओर अपने पति के जीवन को लेकर चिंतित, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने सरकार, मीडिया और बीएसएफ अधिकारियों से मुलाकात कर अपनी बात मजबूती से रखी और अंततः अपने पति की वापसी सुनिश्चित करवाई। अब BSF जवान पूर्णम शॉ की वापसी हो रही है।
निष्कर्ष
बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ की यह कहानी केवल एक सैनिक की वापसी नहीं है, बल्कि यह सरकार, सेना, परिवार और समाज के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि संवाद, धैर्य और एकजुटता से कोई भी मुश्किल हल की जा सकती है।