Society on Menstruation: – माहवारी (Menstruation) केवल महिलाओं या लड़कियों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और मानवाधिकार का विषय है। जब तक हम इस पर खुलकर बातचीत नहीं करेंगे, तब तक समाज में बदलाव संभव नहीं है। हमें इसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में देखने की ज़रूरत है, जिस पर पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से चर्चा करनी चाहिए।

माहवारी पर चुप्पी क्यों? हर किसी को बनना होगा इसका हिस्सा
एक महिला की जुबानी – तेलंगाना से
“जब हम छोटी थीं तो हमारी मां सेनेटरी पैड्स लाती थीं, कभी-कभी पिता भी ला देते थे। अब हम खुद पैड्स खरीदते हैं या हमारे पति ले आते हैं। हमें अपने पति से पैड मंगवाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन दुकानदार से मांगने में शर्म आती है क्योंकि दुकानें अधिकतर पुरुषों की होती हैं।”
यह बयान महिला का है जो भारत के कई हिस्सों में महिलाओं की वास्तविकता को दर्शाता है। लड़कियां और महिलाएं आज भी सेनेटरी पैड्स खरीदने में झिझकती हैं, खासकर जब दुकानदार पुरुष हो। माहवारी से जुड़ी यह चुप्पी, शर्म और संकोच गहराई से समाज में फैले हैं।
माहवारी पर चुप्पी: सामाजिक और पारिवारिक प्रभाव
Society on Menstruation: भारत में अधिकांश पुरुष – पिता, पति, भाई या बेटे – कई बार महिलाओं के लिए सेनेटरी प्रोडक्ट्स खरीदते हैं, लेकिन फिर भी उनसे इस विषय पर बात नहीं होती। कारण? सामाजिक संरचनाएं और लिंग आधारित संवाद की कमी।
महिलाओं को इस दौरान दर्द, हार्मोनल बदलाव, साफ-सफाई की कमी और निजी स्थानों की अनुपलब्धता जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है, लेकिन इन मुद्दों को सार्वजनिक रूप से जगह नहीं मिलती।
अब तक हुई प्रगति
Society on Menstruation: भारत ने पिछले कुछ वर्षों में माहवारी स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार किए हैं। कई सामाजिक संगठनों और सरकारी प्रयासों ने इस विषय को मुख्यधारा में लाने का कार्य किया है।
कुछ प्रमुख प्रयास
संगठन/अभियान | योगदान/उद्देश्य |
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Goonj | ‘Not Just a Piece of Cloth’ के जरिए कपड़े के पैड वितरित करता है |
Boondh | मेंस्ट्रुअल कप्स को बढ़ावा और शिक्षा कार्यक्रम |
Good Universe | महिलाओं और पुरुषों दोनों को जागरूक करता है |
Menstrupedia | कॉमिक्स के ज़रिए शिक्षण |
Eco Femme | पर्यावरण अनुकूल पैड्स उपलब्ध कराता है |
UNESCO – #SpotlightRed | किशोरों के लिए शैक्षणिक मॉड्यूल्स |
#KeepGirlsInSchool | स्कूल ड्रॉपआउट कम करने पर केंद्रित अभियान |
National Health Mission | किशोरियों के लिए दिशा-निर्देश जारी |
अभी भी जारी है पीरियड पॉवर्टी की चुनौती
हालांकि कई प्रयास हुए हैं, लेकिन ग्रामीण और गरीब समुदायों तक इनकी पहुंच सीमित है। NFHS-5 (2019–21) के अनुसार, भारत में सेनेटरी प्रोडक्ट्स के उपयोग में 20% की बढ़ोत्तरी हुई है, फिर भी बड़ी आबादी अब भी सुरक्षित, सस्ते और टिकाऊ साधनों तक नहीं पहुंच पा रही है।
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पीरियड पॉवर्टी से जुड़ी मुख्य समस्याएं:
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आर्थिक रूप से कमजोर तबकों में पैड्स की उपलब्धता कम
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सामाजिक व सांस्कृतिक वर्जनाएं
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विद्यालयों में माहवारी पर खुली चर्चा की कमी
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निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी कम
स्कूलों में यह विषय किताबों में है, लेकिन कक्षा में खुली चर्चा नहीं होती। शिक्षक इसे “लड़कियों का विषय” मानते हैं और इससे कतराते हैं। परिणामस्वरूप, किशोरों के बीच जानकारी का असंतुलन बना रहता है।
पुरुषों की भूमिका: सिर्फ ख़रीददार नहीं, सहभागी बनें
अक्सर परिवारों में पुरुष ही सेनेटरी पैड्स खरीदते हैं और स्वच्छता बजट का निर्णय लेते हैं। ऐसे में उनकी भूमिका सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी होनी चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि कौन-से प्रोडक्ट सुरक्षित हैं, क्या उनके पर्यावरण पर प्रभाव हैं और क्या महिलाओं की पसंद को समझने की ज़रूरत है।
पुरुषों को शुरुआत से ही माहवारी से जुड़ी मिथकों को समझना और तोड़ना सिखाना ज़रूरी है। जब लड़कों को शुरू से शिक्षित किया जाता है, तो उनका नज़रिया सकारात्मक होता है और वे संवेदनशील बनते हैं।
निष्कर्ष: माहवारी सिर्फ महिलाओं का मुद्दा नहीं
माहवारी को लेकर शर्म और चुप्पी तब तक खत्म नहीं होगी जब तक समाज में सभी – पुरुष, महिला, बच्चे, बूढ़े – इसके बारे में खुलकर बात नहीं करेंगे। यह केवल स्वास्थ्य से जुड़ा विषय नहीं, बल्कि महिलाओं की गरिमा, स्वतंत्रता और अधिकार से जुड़ा मुद्दा है।
उम्मीद की किरण
भारत में अब माहवारी पर खुली चर्चा शुरू हो रही है। लेकिन जब तक पुरुषों की भागीदारी नहीं होगी, तब तक यह बदलाव अधूरा रहेगा। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि माहवारी पर बात करना, महिलाओं का साथ देना नहीं बल्कि इंसानियत का साथ देना है।