हाल ही में एक ऐसा घटनाक्रम सामने आया जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को चौंका दिया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के अंतरिम प्रमुख अहमद अल-शरा से मुलाकात की है। यह वही शख्स हैं जिन्हें पहले अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नाम से जाना जाता था और जो एक समय आतंकी संगठन हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के मुखिया थे। यह संगठन अल-कायदा से जुड़ा हुआ रहा है और अमेरिका ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया था।

पूर्व आतंकवादी से डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात: सीरिया की राजनीति में नया मोड़
यह ऐतिहासिक मुलाकात उस समय हुई जब अमेरिका ने सीरिया पर लगाए गए वर्षों पुराने प्रतिबंध हटाने का निर्णय लिया। बताया गया है कि यह कदम सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के आग्रह पर उठाया गया। इस बैठक में सऊदी, अमेरिकी और सीरियाई नेताओं की उपस्थिति ने पश्चिमी एशिया की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया।
डोनाल्ड ट्रंप ने अहमद अल-शरा की तारीफ करते हुए उन्हें “युवा, आकर्षक और सख्त” नेता बताया। इससे दुनिया भर में यह संकेत गया कि अमेरिका अब सीरिया में एक नई राजनीतिक सोच को अपनाने को तैयार है, भले ही वह पहले आतंकवाद से जुड़ी रही हो।
अहमद अल-शरा का सफर भी काफी विवादास्पद और बदलते हुए राजनीतिक समीकरणों से भरा रहा है। पहले इराक में अमेरिकी सेनाओं के खिलाफ जंग लड़ने वाले अल-शरा को अमेरिकी बलों ने हिरासत में लिया था। बाद में उन्होंने सीरिया में HTS नामक संगठन की स्थापना की और यह समूह 2024 में राष्ट्रपति बशर अल-असद की सत्ता को खत्म करने में सफल रहा।
अपने पुराने कट्टर इस्लामी छवि को पीछे छोड़ते हुए अल-शरा ने खुद को सीरिया के अंतरिम नेता के रूप में प्रस्तुत किया। यह परिवर्तन पश्चिमी देशों का विश्वास जीतने की रणनीति माना जा रहा है। अल-शरा अब खुद को लोकतांत्रिक और स्थिर सीरिया के भविष्य के रूप में पेश कर रहे हैं।
हालांकि, ट्रंप के इस फैसले की आलोचना भी हो रही है। मानवाधिकार संगठनों ने सवाल उठाए हैं कि क्या एक पूर्व आतंकवादी को स्वीकार करना सही उदाहरण है? कुछ आलोचकों का मानना है कि यह “न्याय और सुरक्षा” के सिद्धांतों के खिलाफ है। अमेरिका के कई सहयोगी देशों ने भी इसे “नीतिगत भ्रम” का संकेत बताया है।
वहीं दूसरी ओर ट्रंप का कहना है कि अल-शरा के पास टूटी हुई सीरियाई व्यवस्था को फिर से जोड़ने की क्षमता है। उन्होंने इस विषय पर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन से भी बातचीत की है, जिन्होंने अल-शरा के प्रति सहमति जताई है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नई साझेदारी भविष्य में सीरिया और पश्चिमी देशों के रिश्तों को किस दिशा में ले जाती है। क्या यह फैसला एक नई शुरुआत साबित होगा या फिर एक और विवाद का कारण बनेगा, इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।