UN Court on Climate Change- संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने बुधवार को जलवायु परिवर्तन पर ऐतिहासिक सलाहकार राय दी। इस फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि अगर कोई देश पृथ्वी को जलवायु संकट से बचाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाता, तो वह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर सकता है। इतना ही नहीं, जिन देशों या लोगों को इस संकट से नुकसान हुआ है, वे हर्जाने के हकदार भी हो सकते हैं।
कोर्ट के अध्यक्ष यूजी इवासावा ने कहा, “किसी भी देश का उचित कदम न उठाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत कार्य हो सकता है। जलवायु संकट एक अस्तित्वगत संकट है जो हर जीवन रूप और धरती के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।”
धरती बचाओ अदालत ने दिया संदेश- अब देर नहीं, कार्रवाई जरूरी!
UN Court on Climate Change- ये राय बाध्यकारी नहीं है लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय जलवायु कानून में मील का पत्थर माना जा रहा है। कोर्ट ने साफ कहा कि “स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण” एक मानव अधिकार है, जो भविष्य में नए मुकदमों और कानूनी कदमों का रास्ता खोलेगा।
यह मामला प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश वानुअतु ने उठाया था, जिसे 130 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला। अमेरिका और चीन जैसे बड़े प्रदूषक देश भी ICJ के सदस्य हैं।
कोर्ट के बाहर जलवायु कार्यकर्ता “अब कानून साफ है, देश तुरंत कार्रवाई करें!” लिखे बैनर लेकर जुटे थे। फैसले के बाद लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाया, हंसी-खुशी मनाई।
अदालत ने कहा- स्वच्छ पर्यावरण मानव अधिकार, जिम्मेदार देशों को देना होगा मुआवजा
UN Court on Climate Change- पूर्व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मैरी रॉबिन्सन ने कहा, “अब दुनिया की सबसे बड़ी अदालत ने हमें एक मजबूत हथियार दे दिया है कि हम जलवायु संकट से प्रभावित लोगों के लिए न्याय हासिल कर सकें।”
वानुअतु के अटॉर्नी जनरल अर्नोल्ड कील लॉगमैन ने कहा, “हमारे लोगों का अस्तित्व दांव पर है।” प्रशांत द्वीपों पर समुद्र का जलस्तर औसत से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। पिछले दशक में समुद्री स्तर 4.3 सेमी तक बढ़ गया, जिससे कई छोटे द्वीप डूबने की कगार पर हैं।
जलवायु मंत्री राल्फ रेगेनवानु ने कहा, “देशों के बीच समझौते बहुत धीरे चल रहे हैं। यह फैसला एक नई उम्मीद है।” अब कार्यकर्ता अपने देशों के खिलाफ भी मुकदमे कर सकते हैं कि वे कोर्ट की राय को नजरअंदाज क्यों कर रहे हैं। केंद्र for इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल लॉ की वरिष्ठ वकील जोई चौधरी ने कहा, “यह फैसला अतीत, वर्तमान और भविष्य—तीनों को संबोधित करता है। बिना ऐतिहासिक जिम्मेदारी तय किए हम जलवायु संकट नहीं सुलझा सकते।”
हालांकि अमेरिका और रूस जैसे पेट्रोलियम उत्पादक देश उत्सर्जन घटाने के लिए बाध्यकारी आदेशों के खिलाफ हैं। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने चेतावनी दी कि जीवाश्म ईंधन से चिपके रहना खुद को कंगाल करने जैसा होगा। इससे पहले इंटर-अमेरिकन कोर्ट और यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स भी जलवायु संरक्षण के पक्ष में ऐतिहासिक फैसले दे चुके हैं। 2019 में नीदरलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने भी जलवायु सुरक्षा को मानव अधिकार माना था।
कोर्ट के अध्यक्ष ने माना कि अंतरराष्ट्रीय कानून की भूमिका सीमित है, लेकिन टिकाऊ समाधान के लिए विज्ञान, तकनीक और इंसानी समझ का योगदान जरूरी होगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य मिल सके।