US Silent on Pakistan: वॉशिंगटन, जून 2025: हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी के नेतृत्व में एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका का दौरा किया। इस यात्रा में उन्होंने अमेरिकी विदेश विभाग की वरिष्ठ अधिकारी एलिसन हूकर सहित कई शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। इस उच्च स्तरीय बैठक में आतंकवाद, क्षेत्रीय स्थिरता और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की गई।

बिलावल की अमेरिका यात्रा पर उठा सवाल: आतंक पर प्रतिबद्धता या केवल औपचारिकता?
इस यात्रा को लेकर एक बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि क्या पाकिस्तान ने अमेरिका को अपनी धरती पर सक्रिय आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई ठोस आश्वासन दिया? अमेरिका ने इस पर अब तक चुप्पी साध रखी है।
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आतंकवाद पर चुप्पी क्यों?
जब अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता टैमी ब्रूस से सीधे पूछा गया कि क्या पाकिस्तान ने आतंकवाद के मुद्दे पर कोई वादा किया है, तो उन्होंने कहा,
“मैं उन वार्तालापों के विवरण पर बात नहीं कर सकती।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के संबंधों में आतंकवाद के मुद्दे को सबसे अहम माना जा रहा है। भारत लगातार यह मुद्दा उठाता रहा है कि पाकिस्तान की धरती से संचालित आतंकी समूह सीमा पार हमलों में लिप्त हैं। इस संदर्भ में पाकिस्तान की ओर से कोई नई प्रतिबद्धता सामने न आना कई सवाल खड़े करता है।
किन मुद्दों पर हुई चर्चा?
प्रवक्ता ब्रूस के अनुसार, प्रतिनिधिमंडल की मुलाकातों में आतंकवाद रोधी सहयोग, क्षेत्रीय शांति, और भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम को लेकर चर्चा हुई। एलिसन हूकर ने भारत और पाकिस्तान के बीच जारी सीज़फायर को समर्थन देने की अमेरिका की नीति को दोहराया।
हालांकि, बातचीत में यह साफ नहीं किया गया कि पाकिस्तान ने किसी आतंकवादी संगठन के खिलाफ कार्रवाई करने या उन्हें रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाए हैं। आतंकवाद के मुद्दे पर यह अस्पष्टता न केवल अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों पर असर डाल सकती है, बल्कि भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को भी प्रभावित कर सकती है।
भारत को मिला अमेरिकी समर्थन
इस बीच, कांग्रेस नेता शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय संसद का एक प्रतिनिधिमंडल भी अमेरिका पहुंचा, जहां उनकी मुलाकात डिप्टी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट क्रिस्टोफर लैंडाउ से हुई। इस बैठक में अमेरिका ने भारत को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मजबूत समर्थन देने की बात दोहराई।
ब्रूस ने बताया कि अमेरिका भारत के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करने को प्रतिबद्ध है और आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख को पूरा समर्थन देता है।
कश्मीर पर मध्यस्थता पर सवाल
जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले दिए गए कश्मीर पर मध्यस्थता के प्रस्ताव को लेकर सवाल पूछा गया, तो ब्रूस ने कहा कि वह राष्ट्रपति की ओर से नहीं बोल सकतीं। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप की कोशिश हमेशा रही है कि पुराने और जटिल विवादों को सुलझाया जाए, लेकिन उन्होंने कश्मीर पर किसी ठोस मध्यस्थता योजना की जानकारी नहीं दी।
ब्रूस ने यह जरूर जोड़ा कि यदि कोई और जानकारी चाहिए तो व्हाइट हाउस से संपर्क किया जा सकता है क्योंकि वे इस मुद्दे पर ज्यादा जानकारी दे सकते हैं।
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राजनीतिक संकेत और निष्कर्ष
पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल की अमेरिका यात्रा और उसके बाद की अमेरिकी चुप्पी को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि यह या तो राजनयिक संतुलन की कोशिश है या फिर अमेरिका अभी पाकिस्तान से किसी ठोस वादे की सार्वजनिक घोषणा नहीं करवाना चाहता।
कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन बनाए रखना चाहता है और पाकिस्तान को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, विशेषकर अफगानिस्तान और तालिबान से जुड़ी परिस्थितियों में।
निष्कर्ष
इस पूरे घटनाक्रम में यह बात साफ होती है कि अमेरिका पाकिस्तान से हुई बातचीत को सार्वजनिक करने से बच रहा है। आतंकवाद जैसे गंभीर विषय पर पारदर्शिता की अपेक्षा होती है, लेकिन अमेरिका की ओर से मिली अस्पष्ट प्रतिक्रियाएं इस विषय को और पेचीदा बना रही हैं।
भारत और अमेरिका के मजबूत होते संबंधों की पृष्ठभूमि में यह देखना जरूरी होगा कि पाकिस्तान को लेकर अमेरिका की रणनीति कितनी सख्त या लचीली बनती है। आने वाले समय में अमेरिका का रुख इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के संतुलन को तय करेगा।