भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच हुआ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) आज की अस्थिर वैश्विक व्यापार व्यवस्था में भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इस समझौते का सबसे बड़ा लाभ यह है कि भारत के 99% निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगेगा, जिससे भारतीय उत्पादों को ब्रिटेन के बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी।

भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता: वैश्विक व्यापार में एक निर्णायक कदम
इंजीनियरिंग सामान, परिधान और रत्न-जवाहरात जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों की औद्योगिक संस्थाओं ने इस समझौते का स्वागत करते हुए व्यापार में तेज़ वृद्धि की उम्मीद जताई है। इंजीनियरिंग निर्यात, उदाहरण के लिए, 2029-30 तक $7.55 अरब तक पहुंचने की संभावना जताई गई है। कुल द्विपक्षीय व्यापार भी 2030 तक $120 अरब तक बढ़ने की संभावना है।
एक अन्य अहम उपलब्धि यह है कि यूके में अस्थायी रूप से कार्यरत भारतीय कर्मचारियों और उनके नियोक्ताओं को तीन वर्षों तक सामाजिक सुरक्षा योगदान (social security) से छूट मिलेगी। इससे भारतीय पेशेवरों की यूके में नियुक्ति सरल होगी। यह समझौता पेशेवरों और निवेशकों की आवाजाही को भी सुगम बनाता है, जिससे भारत में घटते प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को गति मिल सकती है।
हालाँकि, इसके कुछ चुनौतियां भी हैं। भारत ने यूके से आयात होने वाले 90% उत्पादों पर शुल्क कम करने पर सहमति दी है, जिनमें से 85% पर अगले दस वर्षों में शुल्क शून्य कर दिए जाएंगे। हालांकि वाहनों पर शुल्क में कटौती से भारतीय उपभोक्ताओं के मूल्य-संवेदनशील व्यवहार में अधिक बदलाव की उम्मीद नहीं है, लेकिन व्हिस्की और जिन पर आयात शुल्क घटने से भारतीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे प्रीमियम ब्रांडों की बिक्री प्रभावित हो सकती है।
इंजीनियरिंग से लेकर रत्नों तक: भारत को एफटीए से कैसे मिलेगा लाभ
सरकार ने पहले यूपीए सरकार के एफटीए की आलोचना की थी, लेकिन खुद के कुछ समझौते भी नकारात्मक परिणाम दे रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, 2022 में हुए भारत-UAE समझौते (CEPA) से भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है, और ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता भी निर्यात में कोई खास बढ़त नहीं ला सका है।
भारतीय किसान संगठनों ने भी यूके FTA का विरोध किया है, विशेष रूप से भेड़ के मांस, सैल्मन और अन्य खाद्य उत्पादों पर शुल्क में कटौती को लेकर। पहले से कम आय और लाभ वाले किसान इन प्रतिस्पर्धी उत्पादों के कारण और अधिक संकट में आ सकते हैं। सरकार को उनके हितों की रक्षा हेतु ठोस रणनीति बनानी होगी।
यह समझौता भविष्य में यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ होने वाले समझौतों की रूपरेखा बन सकता है। ऐसे में भारत को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी क्योंकि ये साझेदार ब्रिटेन की तुलना में कहीं अधिक प्रभावशाली हैं। भारतीय विनिर्माण क्षेत्र, जो वैश्विक निर्यात में अभी 2% से भी कम योगदान देता है, को इस समय संरक्षण और प्रोत्साहन की आवश्यकता है — न कि ऐसी शर्तें जो उसकी प्रतिस्पर्धा को कमजोर करें।