Shameful Comment on Army: -उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव के एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। मुरादाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लेकर जातिसूचक टिप्पणी कर दी। उनके इस बयान को लेकर कई राजनीतिक दलों ने कड़ा विरोध जताया है।

विंग कमांडर पर टिप्पणी को लेकर विपक्ष में बढ़ा तनाव, BSP और BJP आमने-सामने सपा से नाराज़
Shameful Comment on Army: बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस पूरे घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि “पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने जो वीरता दिखाई है, उस पर पूरा देश गर्व कर रहा है। ऐसे समय में सेना को जाति और धर्म के आधार पर बांटना या आंकना अत्यंत निंदनीय है। बीजेपी के एक मंत्री ने ऐसी गलती की थी, और अब वही गलती सपा के एक वरिष्ठ नेता ने भी दोहरा दी है, जो शर्मनाक और अफसोसनाक है।”
राम गोपाल यादव ने अपने बयान में यह कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर में जो अधिकारी शामिल थे, वे खास जातियों से थे और असली लड़ाई ‘PDA’ यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग ने लड़ी है। इस बयान को लेकर सत्ताधारी भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे देश की सेना के अपमान से जोड़ा। उन्होंने कहा कि सेना की वर्दी को जाति या धर्म की नजर से नहीं देखा जाता। हर सैनिक देश के लिए लड़ता है, न कि किसी जाति या समुदाय के लिए। उन्होंने इसे तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति का नतीजा बताया।
योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि यह वही सोच है जो देश की एकता को खंडित करने का काम करती है और देशभक्ति को भी जातियों में बांटने का दुस्साहस करती है। उनका मानना है कि सपा नेताओं को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए, खासकर जब देश की सेना बहादुरी से सीमा की रक्षा कर रही हो।
हालांकि, सपा ने अपने नेता का बचाव किया है। पार्टी प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा कि राम गोपाल यादव के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। उनका मकसद किसी की जाति बताना नहीं था, बल्कि उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि सेना में सभी वर्गों और धर्मों के लोग योगदान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि सपा सभी धर्मों और जातियों का सम्मान करती है और सेना की एकता को सबसे ऊपर मानती है।
इस बयानबाजी से एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सेना जैसे संस्थान को राजनीतिक बयानबाज़ी से अलग नहीं रखा जाना चाहिए? जब देश की सेनाएं सीमा पर दुश्मनों से लोहा ले रही हैं, तब ऐसे बयान न केवल अनुचित होते हैं बल्कि सेना के मनोबल को भी प्रभावित कर सकते हैं।
विवाद बढ़ता देख अब राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनावी मौसम में ऐसे मुद्दे राजनीतिक दलों के लिए सियासी हथियार बन जाते हैं, जिससे असली मुद्दे पीछे छूट जाते हैं।
मध्य प्रदेश भाजपा के नेता ने भी कर्नल सोफिया पर ऐसी ही विवादस्पद टिप्पणी कर के पहले ही एक विवाद खड़ा कर दिया था। सेना को किसी भी जाती या धर्म में रंग ने से नेताओं को बचना चाहिए। ये ना सिर्फ उनके स्तरहीनता को दिखाती है बल्कि उनके वोटर्स का मनोबल भी गिराती है।