TN Govt in Supreme court against center : तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है, जिसमें दावा किया गया है कि केंद्र ने राज्य के लिए निर्धारित ₹2,000 करोड़ की शिक्षा फंड राशि को रोक दिया है। यह फंड समग्र शिक्षा योजना के तहत दिया जाना था, जिससे लाखों छात्रों और शिक्षकों को लाभ मिलता।

तमिलनाडु को ₹2000 करोड़ शिक्षा फंड न देने पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के खिलाफ मुकदमा
याचिका में क्या कहा गया?
तमिलनाडु की ओर से यह मूल याचिका राज्य के वकील सबरीश सुब्रमण्यम द्वारा दाखिल की गई है। इस केस में सीनियर अधिवक्ता पी. विल्सन ने राज्य का पक्ष रखा और अधिवक्ताओं रिचर्डसन विल्सन और अपूर्व मल्होत्रा ने याचिका का ड्राफ्ट तैयार किया।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने जानबूझकर राज्य को मिलने वाली फंडिंग रोक दी है और इसका कारण तमिलनाडु द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) के तीन-भाषा फॉर्मूले का विरोध करना है।
कौन होंगे प्रभावित?
तमिलनाडु सरकार का दावा है कि इस फंड के न मिलने से राज्य के 43,94,906 छात्र और 2,21,817 शिक्षक प्रभावित होंगे। यह फंड स्कूलों के संचालन, आधारभूत ढांचे और शैक्षणिक गतिविधियों के लिए जरूरी है।
राज्य सरकार ने यह भी साफ किया है कि समग्र शिक्षा योजना का NEP-2020 या प्रधानमंत्री श्री स्कूल योजना से कोई सीधा संबंध नहीं है, इसलिए केवल तीन-भाषा नीति के विरोध के कारण फंड रोकना संविधान के संघीय ढांचे और शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन है।
शिक्षा में राजनीति का आरोप
तमिलनाडु सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार शिक्षा को लेकर राजनीतिक दृष्टिकोण अपना रही है और उन राज्यों को दंडित कर रही है जो NEP-2020 की सभी शर्तों को स्वीकार नहीं करते।
प्रधानमंत्री श्री स्कूल योजना (PM SHRI) में यह शर्त है कि योजना का लाभ पाने के लिए राज्य को पूरी तरह से NEP-2020 को लागू करना होगा। तमिलनाडु ने इस नीति का विरोध करते हुए कहा था कि यह राज्य की भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ है।
तीन-भाषा नीति पर विवाद
NEP-2020 के तहत प्रस्तावित तीन-भाषा फॉर्मूला का तमिलनाडु शुरू से विरोध करता रहा है। राज्य का तर्क है कि पहले से ही तमिल और अंग्रेज़ी के रूप में दो भाषाएं पढ़ाई जाती हैं, और तीसरी भाषा थोपना छात्रों पर अतिरिक्त बोझ डालने जैसा है। राज्य ने केंद्र से यह भी अनुरोध किया था कि भाषा चयन राज्यों के अधिकार क्षेत्र में रहना चाहिए।
केंद्र पर पक्षपात का आरोप
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर केंद्र सरकार राजनीतिक भेदभाव कर रही है। फंड रोकने की वजह से राज्य में सरकारी स्कूलों की स्थिति प्रभावित होगी, जिससे गरीब और पिछड़े वर्गों के छात्रों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
राज्य ने यह भी बताया कि केंद्र का यह कदम संघीय व्यवस्था के खिलाफ है, जहां राज्यों को उनकी नीतियों के आधार पर दंडित नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा, यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के भी खिलाफ है, जो हर बच्चे को निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी देता है।
क्या कहती है केंद्र सरकार?
इस याचिका पर केंद्र सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि केंद्र समग्र शिक्षा योजना के तहत फंडिंग को नीतिगत आधारों पर रोकने की बात कह सकता है, जिसमें NEP-2020 को लागू करने की शर्तें शामिल हो सकती हैं।
निष्कर्ष
तमिलनाडु द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर यह याचिका सिर्फ एक राज्य और केंद्र सरकार के बीच टकराव नहीं है, बल्कि यह भारत के संघीय ढांचे, भाषा नीति और शिक्षा के अधिकार जैसे बड़े मुद्दों को भी छूती है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है और क्या यह मामला देशभर में शिक्षा नीति को लेकर एक नई बहस को जन्म देगा।