भारतीय वैज्ञानिक बदर खान सूरी को अमेरिका में बिना किसी ठोस आरोप के दो महीने तक हिरासत में रखने के बाद अब रिहा कर दिया गया है। यह मामला अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर बहस का विषय बन गया है, जिसमें अमेरिका की आव्रजन नीति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अमेरिका में भारतीय शोधकर्ता से बर्बरता: 2 महीने तक हिरासत में, बिना आरोप
मार्च 2025 में, वर्जीनिया स्थित अपने घर से बदर खान सूरी को अमेरिकी आव्रजन अधिकारियों ने हिरासत में लिया था। वे जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में पोस्टडॉक्टरल फेलो के रूप में कार्यरत थे। अधिकारियों ने उनके वीजा को रद्द कर उन्हें टेक्सास के एक हिरासत केंद्र में बंद कर दिया, जहां उन्हें लगभग दो महीने तक रखा गया।
बिना आरोप और अमानवीय व्यवहार
बदर खान सूरी के खिलाफ कोई स्पष्ट आपराधिक आरोप नहीं थे। अमेरिकी प्रशासन ने उनके सोशल मीडिया पोस्ट और उनकी पत्नी मेफेज़ सालेह के गाज़ा संबंधों को आधार बनाकर कार्रवाई की थी। अमेरिका ने हमास को आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है, और प्रशासन का आरोप था कि सूरी के पोस्ट उसमें समर्थन दर्शाते हैं।
हिरासत से रिहा होने के बाद, सूरी ने मीडिया से बात की और बताया कि उन्हें जंजीरों में बांधकर रखा गया, टखनों और कलाई पर हथकड़ियाँ थीं, और उन्हें गंदगी से भरी जेल में रखा गया था। उन्होंने कहा, “पहले हफ्ते में मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी अपनी परछाई भी मुझे नहीं पहचान रही। मुझे पूरी तरह जंजीरों में जकड़ दिया गया था।”
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परिवार पर मानसिक प्रभाव
सूरी ने यह भी साझा किया कि हिरासत में रहते हुए सबसे ज्यादा चिंता उन्हें अपने बच्चों को लेकर थी। उनका 9 वर्षीय बेटा जानता था कि उसके पिता जेल में हैं, और इससे वह गहरे तनाव में चला गया। उनकी पत्नी मेफेज़ सालेह ने कहा, “मेरे दिल की सबसे बड़ी खुशी यही है कि मेरे बच्चों को उनका पिता वापस मिल गया। मैं उस जज को गले लगाना चाहती हूं जिसने यह फैसला दिया।”
अदालत का अहम फैसला
अमेरिकी जिला न्यायाधीश पेट्रीसिया टोलिवर जाइल्स ने सूरी की रिहाई का आदेश देते हुए कहा कि उनका राजनीतिक भाषण अमेरिका के संविधान के प्रथम संशोधन के तहत संरक्षित है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को समान रूप से प्राप्त हैं और इससे सार्वजनिक सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है।
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विश्वविद्यालयों में उठी आवाज
यह मामला अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चिंता का कारण बन गया है। इससे पहले टफ्ट्स विश्वविद्यालय की छात्रा रूमेसा ओज़टर्क और कोलंबिया विश्वविद्यालय के छात्र मोहसेन महदावी को भी इसी तरह हिरासत में लिया गया था। हालांकि बाद में उन्हें अदालत के आदेश पर रिहा कर दिया गया।
न्यायिक संगठनों की प्रतिक्रिया
सेंटर फॉर कॉन्स्टीट्यूशनल राइट्स ने बयान जारी कर कहा, “यह मामला दिखाता है कि अमेरिका में आव्रजन कानूनों का कैसे राजनीतिक उपयोग किया जा रहा है। ट्रंप प्रशासन ने इस मामले में संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।”
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अंतरराष्ट्रीय चिंता
बदर खान सूरी का मामला अब केवल एक व्यक्ति की हिरासत का मामला नहीं रहा। यह अमेरिकी नीतियों में नस्लीय भेदभाव, अभिव्यक्ति की आज़ादी और राजनीतिक स्वतंत्रता जैसे मूलभूत मुद्दों को उजागर करता है। यह साफ करता है कि अमेरिका में भी लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की चुनौती सामने है।
निष्कर्ष
बदर खान सूरी की रिहाई भले ही कानूनी जीत हो, लेकिन यह मामला बताता है कि वैश्विक मंच पर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर कितनी जटिलताएं हैं। जब तक ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी नहीं जाती, तब तक ये केवल एक इंसान की पीड़ा नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की हार है।